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Rahul Sankrityayan
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Dimagi Gulami (दिमागी गुलामी) - Summary
"दिमागी गुलामी" एक विचारोत्तेजक पुस्तक है जिसे प्रख्यात लेखक राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है। इस पुस्तक में लेखक ने समाज में व्याप्त मानसिक दासता पर गहन चिंतन किया है। लेखक का मानना है कि प्रान्तवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, और राष्ट्रवाद जैसे विचार मनुष्य को मानसिक रूप से गुलाम बनाए हुए हैं। ये संकीर्ण विचारधाराएँ मनुष्य की सोच को सीमित करती हैं और उसे वास्तविक प्रगति से रोकती हैं।
प्रमुख विषय
मानसिक दासता
लेखक के अनुसार, प्रान्तवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, और राष्ट्रवाद जैसे विचार मनुष्य को मानसिक रूप से गुलाम बनाए हुए हैं। ये संकीर्ण विचारधाराएँ मनुष्य की सोच को सीमित करती हैं और उसे वास्तविक प्रगति से रोकती हैं।
अंधविश्वास और रूढ़िवादिता
पुस्तक में यह भी बताया गया है कि अतीत के प्रति अंधा लगाव और रूढ़िवादी मान्यताएं भी मानसिक गुलामी का कारण बनती हैं। धर्म और परंपरा के नाम पर किए जाने वाले अंधविश्वासों और कुरीतियों की आलोचना की गई है।
नए दृष्टिकोण की आवश्यकता
लेखक का मानना है कि इन समस्याओं से निपटने के लिए हमें अपनी विचारधाराओं को बदलने और एक नए दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है। हमें अपने अतीत के गौरव में खोए बिना वर्तमान की चुनौतियों का सामना करना होगा।
FAQ's
"दिमागी गुलामी" में राहुल सांकृत्यायन ने प्रान्तवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, और राष्ट्रवाद जैसे विचारों को मानसिक दासता का कारण बताया है। इसके अलावा, उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़िवादी मान्यताओं की भी आलोचना की है।
"दिमागी गुलामी" मुख्यतः भारतीय समाज की मानसिक दासता पर केंद्रित है, लेकिन इसमें वर्णित विचारधाराएँ और समस्याएँ वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक हो सकती हैं। यह पुस्तक उन सभी के लिए है जो मानसिक दासता के बारे में जानना और समझना चाहते हैं।
राहुल सांकृत्यायन का मानना है कि मानसिक दासता से निपटने के लिए हमें अपनी विचारधाराओं को बदलने और एक नए दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है। हमें अंधविश्वास और रूढ़िवादी मान्यताओं को त्यागकर वर्तमान की चुनौतियों का सामना करना होगा।
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